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Thursday, December 11, 2025
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खतरे में शैक्षणिक आजादी, कैसे विश्वविद्यालयों को धर्मनिरपेक्ष बनाए – डॉ. एस. मुरलीधर

http://Academic freedom in India is under threat: Dr. S. Muralidhar delivers the Prof. G.N. Saibaba Memorial Lecture

Sandhyamidday@Newdelhi@सीनियर एडवोकेट और पूर्व चीफ़ जस्टिस डॉ. एस. मुरलीधर ने प्रो. जी.एन. साईबाबा मेमोरियल लेक्चर में कहा कि भारत में आज असहमति को दबाया जा रहा है, विचारधारात्मक हस्तक्षेप बढ़ रहे हैं, और न्यायिक प्रक्रिया ही सज़ा बन गई है। उन्होंने प्रो. साईबाबा को श्रद्धांजलि दी, जिन्हें उन्होंने साहस और आशा का प्रतीक बताया। प्रो. साईबाबा, दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी शिक्षक थे, जिन्हें UAPA के तहत गिरफ्तार किया गया था। 2017 में सजा के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2022 में उन्हें बरी किया, पर सुप्रीम कोर्ट ने अगले ही दिन रोक लगा दी। गंभीर बीमारी और व्हीलचेयर पर निर्भरता के बावजूद उन्हें जमानत नहीं मिली। दोबारा 2024 में बरी होने के बाद जल्द ही उनकी मृत्यु हो गई। मुरलीधर ने पूछा — “सिस्टम की इस निर्दयता की जिम्मेदारी कौन लेगा?”

भारत की गिरती वैश्विक रैंकिंग उन्होंने बताया कि 2025 के Academic Freedom Index में भारत अब उन देशों में है जहाँ शैक्षणिक स्वतंत्रता लगभग समाप्त है। 2013 में भारत “पूरी तरह स्वतंत्र” था, पर अब वह सीरिया और ईरान जैसे देशों के बराबर आ गया है।

तीन उदाहरण

1. इंदौर लॉ कॉलेज (2022): प्रो. इनामुल रहमान पर “हिंदू विरोधी किताब” रखने का आरोप, FIR दर्ज हुई, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इसे “मूर्खतापूर्ण” बताया।

2. मुजफ्फरनगर स्कूल (2023): एक शिक्षिका ने मुस्लिम छात्र को थप्पड़ मरवाए, कोर्ट ने RTE उल्लंघन माना।

3. तमिलनाडु जाति हमला (2023): दलित छात्र पर ऊँची जाति के छात्रों ने दरांती से हमला किया, सरकार ने सुधार के उपाय मांगे। “विचारधारा का आतंक” और संस्थागत नियंत्रण जस्टिस मुरलीधर ने कहा कि देश में कट्टर समूह विश्वविद्यालयों में हस्तक्षेप कर रहे हैं, “लेफ्ट-लिबरल” शिक्षकों पर हमले हो रहे हैं और संस्थागत नियंत्रण बढ़ रहा है। उन्होंने रामचंद्र गुहा, डॉ. फिरोज़ खान और प्रो. सब्यसाची दास के उदाहरण दिए जिन्हें दबाव के कारण इस्तीफा देना पड़ा।

उन्होंने कहा कि भारत में शैक्षणिक स्वतंत्रता को जाति, वर्ग और साम्प्रदायिक भेदभाव की बाधाओं के बीच जीवित रखना चुनौती है। उन्होंने पूछा — “हम विश्वविद्यालयों को फिर से धर्मनिरपेक्ष और मुक्त विचारों का केंद्र कैसे बनाएँ?” अपने भाषण का अंत उन्होंने 1986 के सुप्रीम कोर्ट के ‘बिजॉय इमैनुअल’ फैसले के हवाले से किया — “हमारा संविधान सहिष्णुता का अभ्यास करता है।”

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