बिमल रॉय, भारतीय सिनेमा के उन महान निर्देशकों में से एक हैं जिनका नाम सुनते ही भारतीय सिनेमा के स्वर्णिम युग की यादें ताजा हो जाती हैं। उनका का जन्म 12 जुलाई 1909 को ढाका, बांग्लादेश में हुआ था।
बिमल रॉय ने अपने करियर की शुरुआत कलकत्ता के न्यू थिएटर स्टूडियो में की, जहां उन्होंने अपनी फिल्म बनाने की कला को निखारा। इस दिग्गज निर्देशक का उद्देश्य हमेशा से समाज के वास्तविक मुद्दों को पर्दे पर लाना था।बिमल रॉय भारतीय सिनेमा के उन महान फिल्म निर्माताओं में से एक हैं, जिन्होंने अपनी फिल्मों से समाज को एक नया दृष्टिकोण दिया।
उन्होंने भारतीय सिनेमा को परिणीता, बिराज बहू, देवदास, मधुमती, सुजाता, परख और बंदिनी जैसी कई कल्ट फिल्में दीं, इनमें ‘दो बीघा जमीन’ (1953) भी शामिल है, जो भारतीय सिनेमा की एक महत्वपूर्ण कृति मानी जाती है। इस फिल्म ने अंतरराष्ट्रीय कान्स फिल्म फेस्टिवल में भी अपनी जगह बनाई थी, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि बिमल रॉय को इस फिल्म को बनाने का आइडिया कहां से आया ?
बिमल रॉय की दो बीघा जमीन एक सामाजिक फिल्म है जो किसानों की समस्याओं और उनकी संघर्ष भरी जिंदगी को दिखाती है। ये फिल्म आज भी भारतीय सिनेमा में एक मील का पत्थर मानी जाती है। बिमल रॉय ने अपनी फिल्मों के जरिए समाज के वास्तविक मुद्दों को उजागर किया और अपने दर्शकों को सोचने पर मजबूर किया। उनकी दो बीघा जमीन भारतीय सिनेमा के इतिहास में हमेशा यादगार रहेगी.
कैसे बनी ‘दो बीघा जमीन’?
‘दो बीघा जमीन’ ऐसी फिल्म हैं, जिसने भारतीय सिनेमा में न सिर्फ एक नया अध्याय लिखा, बल्कि सामाजिक मुद्दों को भी बड़ी संजीदगी से उठाया।
बिमल रॉय को ‘दो बीघा जमीन’ एक इटैलियन फिल्म से इंस्पायर्ड थी। उन्हें इसे बनाने का आइडिया 1948 में आई विटोरियो डी सिका (Vittorio De Sica) की बाइसिकल थीव्स (Bicycle Thieves) देखने के बाद आया था। ये फिल्म एक गरीब परिवार की है, जिसमें घर का मुखिया काम करने के लिए पाई- पाई जोड़कर एक साइकिल खरीदता है, लेकिन काम के पहले दिन ही वो चोरी हो जाती है।