back to top
Wednesday, October 22, 2025
spot_img
HomeEntertainmentBollywoodजन्मदिन पर नए सिंगर्स लॉन्च करते हैं कैलाश खेर

जन्मदिन पर नए सिंगर्स लॉन्च करते हैं कैलाश खेर

पद्मश्री कैलाश खेर ने अपनी आवाज के जादू से लोगों के दिल में अपने लिए एक खास जगह बनाई है, लेकिन यहां तक पहुंचने का उनका यह सफर इतना भी आसान नहीं था। 12 वर्ष की उम्र में घर छोड़ दिया। इंडस्ट्री में आए तो लोगों को लगता था कि पुजारी कहां से आ गया।

दैनिक भास्कर से खास बातचीत के दौरान कैलाश खेर ने बताया कि अपने जन्मदिन पर वो नए सिंगर्स को लॉन्च करते हैं। ऐसा करने की प्रेरणा उन्हें तब मिली जब मुंबई में अपनी किस्मत आजमाने आए। कैलाश खेर कहते हैं कि मुंबई में आसानी से कोई किसी का हाथ नहीं थामता है। मैं जब मुंबई में मुश्किल के दौर से गुजर रहा था, तब एक शपथ ली थी कि अगर प्रभु हमें सफल बनाएंगे, तो मैं नई प्रतिभाओं को मंच दूंगा।’

7 जुलाई 1973 को दिल्ली में जन्मे कैलाश खेर आज अपना 51वां बर्थडे मना रहे हैं। इस मौके पर जानते हैं उनसे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें उन्हीं की जुबानी…

बर्थडे पर केक नहीं कटता, अनुष्ठान होते हैं

बचपन से लेकर आज तक हमारे जन्मदिन पर कभी केक नहीं काटा गया। मैं इंडियन आइडल शो में जज था। अचानक हमारे जन्मदिन पर केक काटकर सरप्राइज दिया गया। पहली बार जीवन में केक काटा था। वह बात मेरे दिल को नहीं छू पाई, क्योंकि भले ही मैं इस युग में हूं, लेकिन मैं हजारों वर्ष के पहले का जीवन जी रहा हूं। मैं अपने जन्मदिन को यज्ञ और हवन के साथ मनाता हूं। हमारे जन्मदिन पर अनुष्ठान होते हैं।

जन्मदिन पर नए गायक को लॉन्च करते हैं

मैं अपने जन्मदिन पर एक और शुभ काम करता हूं। मुझे पता है कि जब कोई मुंबई में आता है, तो उसका हाथ आसानी से कोई नहीं थामता है। मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। जब मुंबई में मुश्किल के दौर से गुजर रहा था, तब एक शपथ ली थी कि अगर प्रभु हमें सफल बनाएंगे, तो मैं नई प्रतिभाओं को मंच दूंगा।

जावेद अख्तर और शबाना आजमी पागल कहते हैं

भारत में बहुत बड़े संगीतकार और फिल्म मेकर्स हुए, लेकिन कभी किसी ने किसी का हाथ नहीं थामा है। मैंने 9 साल पहले नई उड़ान की शुरुआत की थी। इस कार्यक्रम के तहत हम नई प्रतिभाओं को एक मंच देते हैं। नए गायक को लॉन्च करते हैं, जो पहले कभी नही हुआ। एक बार हमारे कार्यक्रम में जावेद अख्तर और शबाना आजमी जी आए थे। उन्होंने कहा था कि यह काम कोई पागल ही कर सकता है कि वह अपना कॉम्पिटिटर खुद खड़ा करे।

12 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था

मैंने 12 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था और अनाथ जैसा जीवन काटना पड़ा। 8-10 साल दिल्ली में ही भटकता रहा। यह सोचकर घर छोड़ा था कि कुछ काम करेंगे तो मां-बाप की हेल्प हो जाएगी। आज से 20-30 साल पहले भारत के सामान्य परिवारों में कोई भी बालक कुछ जुनून लेकर घर छोड़ता था तो उसके मन में यही आता कि आज जैसी स्थिति है, उससे अच्छी स्थिति करनी है। अपने मां- बाप को कमाकर अच्छा समय मैं दूंगा।

स्वामी जी की कही बात सच साबित हुई

मैं बचपन की एक घटना बताता हूं। मैं 5 वर्ष का था। मेरे घर स्वामी चेतानंद जी थे। मुझे देखकर बोले कि इस बालक को मैं लेकर जाऊंगा। इसकी शिक्षा -दीक्षा और पालन- पोषण हम करेंगे क्योंकि यह बालक थोड़ा विलक्षण है। पिताजी कुछ नहीं बोले, लेकिन मां भावुक होकर रोने लगीं। मां को लगा कि मेरे बेटे को संत बनाना चाहते हैं।

उस वक्त महाराज जी बोलकर गए कि तुम अभी मोह में हो, अभी तुम नहीं समझ पाओगी, लेकिन याद रखना यह बालक वैसे भी तुम्हारे पास नहीं टिकेगा। वो यह भी बोलकर गए कि ये महात्माओं के पास ही आएगा। उनकी बात सच साबित हुई और मैं 12 वर्ष की आयु में ही घर छोड़ चुका था।

एक साल नौकरी करने के बाद भी नहीं मिली सैलरी

जब आप घर से भाग जाते हैं तो दुनिया आपको अलग दृष्टि से देखती है। पैसा कमाएं या ना कमाएं, लोगों का व्यवहार देखकर जो अनुभव कमाते हैं, वह बहुत तगड़ी कमाई होती है। दिल्ली में कई छोटे-मोटे काम किए। पहली बार एक प्रिंटिंग प्रेस में काम किया, लेकिन साल भर काम करने के बाद भी पैसे नहीं मिले।

थोड़े समय के लिए पत्रकारिता भी की। ट्यूशंस भी पढ़ाए, 150 रुपए महीने मिलते थे। उस समय वो पैसे ज्यादा लगते थे और सोचता था कि अब जी सकता हूं। अभाव से जो प्रभाव होता है, उसी से आपका स्वभाव निर्मित होता है।

साधनों के अभाव से साधक निर्मित हुआ

बहुत जुनून लेकर एक बालक घर से निकला, लेकिन दिशा कुछ नहीं थी। रास्ते में कितने व्यवधान आएंगे, इस बारे में नहीं पता था। चुनौतियां आती रहीं और उन्हीं चुनौतियों ने मुझे निर्मित किया है। आज का कैलाश खेर भले ही पद्मश्री कैलाश खेर हो, परंतु साधनों के अभाव से साधक निर्मित हुआ है। अगर समय से पहले साधन मिल गए होते तो मैं साधक नहीं होता।

बिजनेस में सफल होता तो संगीत छूट जाता

दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्राचार से पढ़ाई की। 21 वर्ष की आयु तक दिल्ली का बहुत तगड़ा एक्सपोर्टर बन गया था। दोस्त के साथ हैंडी क्राफ्ट का बिजनेस शुरू किया। भगवान ने झटका दिया, मेरा बिजनेस चलते- चलते बंद हो गया। उसमें भी पॉजिटिविटी देखता हूं, अगर मैं बिजनेस में सफल होता तो संगीत छूट जाता। धन तो कमाता, लेकिन झूठ बोलता, मैनिपुलेट करता, क्योंकि इसके बिना आप बिजनेस नहीं कर सकते। उस वक्त तो उस झटके ने तोड़ दिया, लेकिन टूटना भी बहुत जरूरी है। उस व्यक्त थोड़ा सा डिप्रेशन में आ गया था।

डिप्रेशन से उबरने के लिए ऋषिकेश आ गया

ऋषिकेश आ गया वहीं घाट पर गाता था। जब ऋषिकेश में आरती के समय गाता था तब संत अपने दुशाले लहराकर नाचते थे। तभी मेरे हृदय में एक बात आई कि मैं तो कुछ जानता नहीं हूं, लेकिन जब मैं गाता हूं तो वो लोग झूमने लगते हैं जो मुझे सबसे प्यारे हैं। उन्हीं में से एक स्वामी परिपूर्णानंद जी महाराज थे। उन्होंने एक बात कही कि बेटा हंसते क्यों नहीं हो? तुम गाते हो तो अलख जलती है। हंसा करो, परमात्मा ने तुम्हें बहुत अलग रोशनी दी है। उस रोशनी का भरपूर लाभ लो और अच्छे से जियो। तुम जो भी गाते हो उसका एक एल्बम बनाना चाहिए। मैं तुमको एक पता देता हूं।

लोगों को लगता था इंडस्ट्री में पुजारी कहां से आ गया

ऋषिकेश से मुंबई विले पार्ले स्थित एक संन्यास आश्रम का पता लेकर आया। मुंबई में पूरे आत्मविश्वास के साथ कदम रखा कि रहने की जगह मिल गई, लेकिन जब यहां आकर महामंडलेश्वर स्वामी विश्वेश्वर आनंद से मिला तो उन्होंने कहा- यहां तो रुकने की व्यवस्था नहीं हो पाएगी। फिर मैं विले पार्ले में ही खादी ग्रामोद्योग के लॉज में रहा। काम के सिलसिले में जब लोगों से मिलना शुरू हुआ तो लोग हमारी शैली पर हंसते थे। लोगों को लगता था कि फिल्मों में पुजारी कहां से आ गया। मैं तो इत्तफाक से फिल्मी गाने, गाने लगा। मैं तो यहां अपना एल्बम निकालने आया था।

शुरू में बहुत सारे रिजेक्शन मिले

मैं जिस तरह का एल्बम बनाना चाह रहा था, उस समय वैसे एल्बम का चलन नहीं था। शुरू में बहुत सारे रिजेक्शन मिले, लेकिन भगवान जो करना होता है, वो करते हैं। पहले जिंगल्स गाए। इससे पैसे मिलने लगे तो थोड़ा सा कॉन्फिडेंस आने लगा और लॉज से किराए वाले घर में रहने लगा।

मुझे तो यह कह कर रिजेक्ट कर दिया गया था कि हीरो जैसी आवाज नहीं है। जब फिल्म में गाने का मौका मिला तो बहुत सरप्राइज था। ‘आल्हा के बन्दे’ हिट होते ही रिजेक्ट करने वाले लोग काम देने लगे। पहला एल्बम मेरा 7 मार्च 2006 को कैलासा रिलीज हुआ था।

किसी के जैसा बनने की सोच कर मत आइए

मैं यह सपना पालकर नहीं आया था कि किसी एक्टर की आवाज बनना है। मैं किसी को सलाह भी नहीं दूंगा। जो भी मनुष्य कुछ और बनने में लगा है, समझिए ईश्वर में उसकी आस्था कम है। मैं एक घटना बताता हूं। मैं एक शो सा रे गा मा पा लिटिल चैंप्स जज कर रहा था। उसमें जतिन- ललित के जतिन पंडित गेस्ट जज बनकर आए।

12-13 साल के एक बच्चे से बोले कि मोहम्मद रफी को यादकर उनके जैसा गाओ। मैंने कहा पंडित जी इसका नाम वैभव है और इसे वैभव की तरह ही गाने दो। रफी को सिर्फ रफी ही गा सकते हैं।

लोग उनको प्रमाण करके उनके जैसा बनने की कोशिश करेंगे, लेकिन रफी तो एक ही हैं ना। ऐसा होना भी चाहिए, ईश्वर ने सबको अपनी चमक देकर भेजा है। इस बात पर जतिन जी थोड़ा उत्तेजित हो गए। मैंने प्रेम से कहा कि पंडित जी को थोड़ा पानी दो। इस तरह से थोड़े मस्ती भरे मोमेंट्स हुए थे। मैं यह कहना चाहता हूं कि जो भी इस मुंबई नगरी में आता है, वो प्लेबैक सिंगर सोचकर बनने ना आए, सिंगर बनने आइए।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments