केपी शर्मा ओली चौथी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बन गए हैं.
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) यानी सीपीएन-यूएमएल के अध्यक्ष खड्ग प्रसाद (केपी) शर्मा ओली को नेपाल के नए प्रधानमंत्री के तौर पर नियुक्त किया गया है.
राष्ट्रपति कार्यालय की तरफ़ से जारी एक बयान में कहा गया है कि राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने रविवार शाम नेपाल के संविधान के अनुच्छेद 76 (2) के अनुसार, ओली को प्रधानमंत्री नियुक्त किया.
ओली ने दो दिन पहले सबसे बड़ी पार्टी नेपाली कांग्रेस के समर्थन से बहुमत का दावा पेश किया था.
2015 में 10 महीने, 2018 में 40 महीने और 2021 में तीन महीने, कुल मिलाकर साढ़े चार साल तक ओली नेपाल के प्रधानमंत्री रहे हैं.
अलग-अलग कार्यकाल में उनके प्रशंसक और आलोचक बनते आए हैं.
केपी ओली का ज़िक्र आते ही उनके प्रशंसकों के सामने जो मुख्य छवि उभरती है, वह है- एक तेज़तर्रार नेता, जिन्होंने कई बार प्रधानमंत्री बनकर देश का नेतृत्व किया, राष्ट्रवाद का समर्थन करते हैं और दो बार किडनी ट्रांसप्लांट होने के बावजूद सक्रिय राजनीतिक जीवन में हैं.
हीं ओली के आलोचकों को लगता है कि कुर्सी पर बने रहने के लिए हर तिकड़म अपनाते रहते हैं.
ओली की छवि एक ऐसे नेता की भी है कि वह पार्टी से लेकर सरकार पर अपना पूरा नियंत्रण रखते हैं.
ओली अपने विरोधियों पर तीखे व्यंग्य करते हैं और राजनीतिक समझौतों को अपने हिसाब से आगे बढ़ाते हैं या उससे बाहर निकल जाते हैं.
ओली ने ख़ुद को ‘स्मार्ट लीडर’ के तौर पर पेश किया है.
पिछले साल उन्होंने नेपाली अख़बार कांतिपुर में एक लेख लिखा था, जिसका शीर्षक था- ”मैंने अपने दिमाग़ से ‘हार’ और ‘अपमान’ को हटा दिया है.”
इस लेख में ओली लिखते हैं, ”कभी-कभी अगर मुझसे कोई आगे निकल जाता है तो जब तक वो मुझसे आगे निकलने की ख़ुशी मना रहा होता है, उस वक़्त मैं हमले की तैयारी कर रहा होता हूँ. ये एक मानवीय प्रवृत्ति है. जब मैं गिरता हूं तो तुरंत उठ भी जाता हूँ.”
राजनीतिक के मंझे हुए खिलाड़ी हैं ओली
साल 2022 में हुए चुनाव में उनकी पार्टी संसद में बड़ी पार्टी से दूसरे नंबर की पार्टी बन गई लेकिन चुनावी नतीजों के बाद वह सरकार बनाने के खेल में आगे निकल गए.
उस वक़्त प्रचंड को केपी शर्मा ओली की पार्टी का समर्थन मिला था. ओली ने प्रचंड को प्रधानमंत्री और उनके सांसदों को मंत्री बनवाया.
इसके बाद राजनीतिक घटनाक्रम में तेज़ उतार-चढ़ाव देखने को मिले. प्रचंड की पार्टी ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी सेंटर)’ ने राष्ट्रपति पद के लिए नेपाली कांग्रेस नेता रामचंद्र पौडेल का समर्थन किया था, जिसके बाद यूएमएल-माओवादी गठबंधन टूट गया.
आख़िरकार कांग्रेस के समर्थन से अब केपी ओली प्रधानमंत्री बन गए हैं. लेकिन कांग्रेस-यूएमएल का ये गठबंधन कितने समय तक चलेगा, इस पर ख़ुद प्रचंड ने भी संदेह जताया है.
विश्वासमत का सामना करने के दौरान प्रचंड ने शुक्रवार को संसद में अपने भाषण में ओली पर कटाक्ष करते हुए कहा, ”कृपया संसद को ख़त्म न करें.”
इस व्यंग्य का मक़सद ओली की तरफ़ से दो बार संसद को भंग करने की सिफ़ारिशों को याद दिलाना था.
राजनीतिक विश्लेषक हरि शर्मा कहते हैं, ”ओली, दुःस्साहसी और साहसी दोनों हैं. कोई दुःस्साहसी हुए बिना संसद को दो बार कैसे भंग कर सकता है?”
जब ओली ने पहली बार प्रतिनिधि सभा को भंग करने की सिफ़ारिश की, उस वक़्त वह प्रधानमंत्री और यूएमएल नेता विद्या भंडारी राष्ट्रपति थीं.
दिसंबर 2020 में प्रतिनिधि सभा को भंग करने की सिफ़ारिश करने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति विद्या भंडारी ने भी इस पर मुहर लगा दी थी.
विपक्षी दलों ने इस क़दम के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया कि भंग करने का फ़ैसला असंवैधानिक था.
साल 2021 में एक बार फिर ओली ने प्रतिनिधि सभा को भंग करने की सिफ़ारिश की. फिर से पार्टियों ने रिट दायर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. कोर्ट में ओली के क़दम को फिर ग़लत माना गया.
वहीं, कलह बढ़ने पर उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता झलनाथ खनाल, माधव कुमार नेपाल समेत 21 सांसदों ने पार्टी छोड़ दी. साथ ही यूएमएल और माओवादियों के बीच अचानक टूट हो गई. इसके बाद नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) तीन हिस्सों में बँट गई, जिसमें एक तरफ़ ओली के नेतृत्व वाली यूएमएल, दूसरी तरफ यूनिफाइड सोशलिस्ट और तीसरी तरफ़ माओवादी थे.
‘राष्ट्रवादी’ छवि
उन घटनाक्रमों की ओर इशारा करते हुए वामपंथियों की एकता को न बचा पाने और लगभग दो-तिहाई बहुमत वाली सरकार को न संभाल पाने के लिए ओली की आलोचना की गई.
भले ही ओली की काफ़ी आलोचना होती आई है लेकिन उनकी राष्ट्रवादी छवि के लिए ख़ास तौर पर उनकी ही पार्टी के नेता बड़े प्रशंसक नज़र आते हैं.
माधव कुमार नेपाल जब प्रधानमंत्री थे, उस वक़्त उनके सलाहकार रहे रघुजी पंत कहते हैं, ”जब भारत ने नाकाबंदी लगाई थी, उस वक़्त केवल केपी ओली और यूएमएल के नेता और कार्यकर्ता ही ऐसे थे, जिन्होंने इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी और इसे खुलकर नाकाबंदी कहा था.”
वो कहते हैं कि मौजूदा नेताओं में केपी ओली ज़्यादा दमदार नज़र आते हैं. उनका मानना है कि ओली ऐसे नेता हैं जो जिस बात पर आश्वस्त हो जाते हैं, उस बात पर अपना पक्ष रखने से नहीं हिचकिचाते हैं.
रघुजी का कहना है, ”केपी ओली के कार्यकाल में ही नेपाल का नया नक्शा संसद में पारित हुआ था.”
14 साल की जेल से लेकर सत्ता तक
ओली की पार्टी सीपीएन-यूएमएल की आधिकारिक वेबसाइट पर ओली का परिचय क़रीब 3600 शब्दों में दिया गया है.
गर्व से बताया गया है कि कम्युनिस्ट शासन स्थापित करने की कोशिशों में उन्हें क्या-क्या झेलना पड़ा है, अपनी ज़िंदगी के 14 साल उन्हें क़ैद में बिताने पड़े हैं. उन्हें एक क्रांतिकारी और समाजवादी नेता के तौर बताया गया है.
लेकिन कुछ ऐसे क़िस्से भी हैं, जो उनकी क्रांतिकारी और समाजवादी छवि को प्रभावित करते हैं.
ऐसा ही एक क़िस्सा आठराई (नेपाल का एक इलाक़ा) में हेलिकॉप्टर के ज़रिए केक लाने का है.
उस वक़्त की ख़बरों में बताया गया कि ओली के जन्मदिन को मनाने के लिए निजी खर्च पर उनके जन्मस्थान तेहराथुम, आठराई के पास चार लाख रुपये खर्च करके एक हेलिपैड बनाया गया था.
इस बात की भी आलोचना की गई कि ओली सुरक्षाकर्मियों से घिरे हुए थे और उन्हें आम लोगों से मिलने नहीं दिया जा रहा था.
केपी ओली का जन्म 72 साल पहले नेपाल के पूर्वी ज़िले तेहराथुम में मोहन प्रसाद ओली और मधुमाया ओली के घर हुआ था. जब वो दस साल के थे तब उनका परिवार नेपाल के झापा ज़िले में रहने चला गया था.
नेपाल के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक़, उन्होंने 14 साल की उम्र में ही राजनीति में क़दम रख दिया था. साल 1970 में वो नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएन) में शामिल हुए थे.
साल 1973 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया था और 14 साल तक वो क़ैद में रहे थे. साल 1987 में वो जेल से रिहा हुए सीपीएन (एमएल) के कमिटी मेंबर बने.
1991 में वो झापा-6 से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. साल 1994 में वो दोबारा चुने गए.
अप्रैल 2006 से मार्च 2007 तक वो प्रधानमंत्री जीपी कोइराला के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार में उप-प्रधानमंत्री रहे.
11 अक्टूबर 2015 को वो पहली बार देश के प्रधानमंत्री चुने गए.