मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण पर असर कई देशों में छात्राओं ने बताया कि उनके पास कई बार ऐसी तस्वीरें व वीडियो सामने आते हैं, जिन्हें वो देखना भी नहीं चाहती हैं। रिपोर्ट में इन हालात पर चिंता जताते हुए शिक्षा में अधिक स्तर पर निवेश किए जाने की अहमियत को रेखांकित किया गया है, विशेष रूप से मीडिया व सूचना साक्षरता के विषय में।
टेक्नोलॉजी ऑन हर टर्म’ शीर्षक वाली एक रिपोर्ट गुरूवार को सार्वजनिक की गई। इसमें खुलाया हुआ कि डिजिटल टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल में निहित लाभों के साथ-साथ यूजर्स की निजता का हनन होने का भी जोखिम है। साथ ही छात्र-छात्राओं का पढ़ाई-लिखाई से ध्यान भटकने और साइबर माध्यमों पर उन्हें डराए-धमकाए जाने की आशंका भी बढ़ती है। यूनेस्को के अनुसार, सोशल मीडिया पर यूजर्स को एल्गोरिथम के आधार पर मल्टीमीडिया सामग्री के उपलब्ध कराई जाती है, लेकिन इससे लड़कियों के यौन सामग्री से लेकर ऐसे वीडियो की जद में आने का खतरा है, जिनमें अनुचित बर्ताव या शारीरिक सुंदरता के अवास्तविक मानकों का महिमांडन किया गया हो।
इससे लड़कियों के लिए मानसिक तनाव बढ़ सकता है। उनके आत्म-सम्मान को ठेस पहुंच सकती है और अपने शरीर के प्रति उनकी धारणा पर नकारात्मक प्रभाव हो सकता है। यह लड़कियों के मानसिक स्वास्थ्य व कल्याण को गहराई तक प्रभावित करता है, जोकि उनके शैक्षणिक प्रदर्शन औ करियर में सफलता पर असर डाल सकता है। यूनेस्को की महानिदेशक ऑड्री अजूले ने कहा कि बच्चों का सामाजिक जीवन, काफी हद तक सोशल मीडिया में परिलक्षित हो रहा है, मगर अक्सर, एल्गोरिथम पर केंद्रित प्लेटफॉर्म से नकारात्मक लैंगिक मानकों को बढ़ावा मिलता है। इसके मद्देनजर उन्होंने डिजिटल प्लेटफॉर्म को विकसित करते समय ऐसे उपाय अपनाने का आग्रह किया, जिनसे महिलाओं के लिए उनकी शैक्षिक व करियर से जुड़ी आकाँक्षाएँ सीमित ना हो सकें।
बढ़ता मानसिक बोझ
यूनेस्को ने अपनी रिपोर्ट में फेसबुक की रिसर्च का उल्लेख किया है, जिसके अनुसार एक सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाली 32 फीसदी किशोर लड़कियों ने बताया कि उन्हें अपने शरीर के बारे में बुरा महसूस होता है और इस वजह से इंस्टाग्राम नामक चैनल पर तो स्थिति और भी दयनीय है। वहीं, टिकटॉक नामक चैनल पर संक्षिप्त अवधि के वीडियो शेयर किए जाते हैं और ये प्लैटफॉर्म युवाओं में बेहद लोकप्रिय है और उनके द्वारा लम्बे समय तक देखा जाता है।
मगर, इससे बच्चों की एकाग्रता और सीखने की प्रवृत्ति पर असर हो सकता है और उनके लिए पढ़ाई-लिखाई व अन्य कार्यों में लम्बे समय तक तन्मयता के साथ काम करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है। रिपोर्ट के अनुसार, सोशल मीडिया पर जिस तरह लड़कियों के लिए नकारात्मक दकियानूसी छवियों को गढ़ा जाता है, वो उन्हें विज्ञान, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग व गणित विषयों में पढ़ाई से दूर ले जा सकती है। इन विषयों को आमतौर पर पुरुष केंद्रित क्षेत्रों के रूप में ही देखा जाता रहा है। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर लड़कों की तुलना में लड़कियों को डराए-धमकाए जाने की ज्यादा घटनाओं का सामना करना पड़ता है। सम्पन्न देशों के समूह (OECD) में उपलब्ध डेटा के अनुसार, औसतन 15 वर्ष की आयु की 12 प्रतिशत लड़कियों को साइबर माध्यमों पर डराया धमकाया गया, जबकि लड़कों के लिए यह आंकड़ा आठ फीसदी है।
बचाव उपायों पर बल तस्वीर
आधारित यौन सामग्री, एआई से तैयार झूठी तस्वीरों व वीडियो (डीपफेक) के ऑनलाइन व कक्षाओं में शेयर किए जाने से हालात और जटिल हो रहे हैं। कई देशों में छात्राओं ने बताया कि उनके पास कई बार ऐसी तस्वीरें व वीडियो सामने आते हैं, जिन्हें वो देखना भी नहीं चाहती हैं। रिपोर्ट में इन हालात पर चिंता जताते हुए शिक्षा में अधिक स्तर पर निवेश किए जाने की अहमियत को रेखांकित किया गया है, विशेष रूप से मीडिया व सूचना साक्षरता के विषय में। साथ ही डिजिटल प्लेटफॉर्म, यूनेस्को के दिशानिर्देशों के अनुरूप स्मार्ट ढंग से नियामन किया जाना होगा। इन गाइडलाइंस को पिछले वर्ष नवंबर महीने में जारी किया गया था।